BA Semester-3 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

समीक्षात्मक प्रश्न

प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा
अभिज्ञानशाकुन्तलम् में वर्णित दुष्यन्त के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
अथवा
दुष्यन्त का चरित्र सामान्य धरातल से निरन्तर उठता ही गया है। और नाटक के अन्त में तो उसने उदात्त सीमा का संस्पर्श किया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् के आधार पर दुष्यन्त के चरित्र का आकलन कीजिए।

उत्तर -

दुष्यन्त अभिज्ञानशाकुन्तलम् का प्रमुखतम पात्र है जिसे नायक कहते हैं। शास्त्रीय दृष्टि से यह धीरोदात्त नायक है। दशरूपक (2.4.5.) के अनुसार धीरोदात्त नायक को महाबली, अति गंभीर, क्षमाशील, अविकत्थन, स्थिर प्रकृति, अहंकारहीन और दृढ़निश्चयी होना चाहिए। उसे देव अथवा पौराणिक ऐतिहासिक उच्चकुलोत्पन्न व्यक्ति होना चाहिए। पुरुवंशी क्षत्रिय राजा दुष्यन्त में उपरिवर्णित सभी गुण विद्यमान हैं जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है -

महाबली - 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' में दुष्यन्त को एक रूपवान एवं बली युवा के रूप में चित्रित किया गया है। वह अति वीर एवं पराक्रमी शासक है और अपने पौरुष के बल पर ही 'समुद्रवसना उर्वी' पर शासन करता है। देव, दनुज, मानव ही नहीं, पशु-पक्षी तथा लता वृक्ष तथा उसके शासन का पालन करते हैं। उस पराक्रमी मानवेन्द्र से दुष्टों को तो सदा भय बना रहता है, इसलिए कोई भी व्यक्ति उसके राज्य में वर्णाश्रम धर्म का परित्याग कर स्वेच्छाचारी किंवा कुपथगामी होने का दुःसाहस कदापि नहीं कर सकता - "न कश्चिद् वर्णानामपथमपकृष्टोऽपि भजते।" जैसाकि कण्वाश्रम के वैरनस द्वारा राजा के प्रति कहे गये इस वचन से स्पष्ट है -

रम्यास्तपोधनानां प्रतिहतिविघ्नाः क्रियाः समवलोक्य।
ज्ञास्यसि कियद् भुजो में रक्षति मौर्वीकिणाङ्क इति॥

कुलपति कण्व के सोमतोर्थ चले जाने से दुष्ट राक्षस तपोवन वासियों के यज्ञादि अनुष्ठानों में विघ्न उत्पन्न करने लगते हैं। उनके द्वारा रक्षा की अभियाचना किये जाने पर और उसी समय नगर से राजमाता का बुलावा आने से वह विदूषक ओर सेनापति को तो समस्य सैन्य सहित नगर भेज देता है और स्वयं अकेला तपोवन की रक्षा में तत्पर हो जाता है। राक्षसों को परास्त करने में उसे विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता। वे राजा के धनुष की टंकार सुनकर ही भाग खड़े होते हैं।

का कथा बाणसन्धाने ज्याशब्देनैव दूरतः।
हुंकारेणैव धनुषः स हि विघ्ननपोहति॥

'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' में दुष्यन्त को देवराजा इन्द्र का सखा बतलाया गया है। वह महाबली होने के साथ अप्रतिम धनुर्धर है। शत्रु के दृष्टिगोचर न होने पर भी वह उसके शब्द मात्र को सुनकर उसे बाणबद्ध करने में समर्थ है। इससे सिद्ध होता है कि दुष्यन्त उत्यन्त वीर, बली एवं पराक्रमी व्यक्ति है।

गम्भीर - गम्भीर शब्द का अर्थ 'गहरा' है। गम्भीर व्यक्ति वही होता है जो उत्तेजना के क्षणों में भी उत्तेजित न होकर संयम से काम लेकर औचित्यानौचित्य का विचार करता है। शकुन्तला के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उसके मन में उसे प्राप्त कर लेने की अभिलाषा उत्पन्न होने पर ही वह संयम और विवेक को नहीं छोड़ता।

रूपवान एवं आदर्श प्रेमी - दुष्यन्त एक सुन्दर एवं प्रभावशाली व्यक्ति है जिसको देखकर कोई भी युवती आकर्षित हो सकती है। उसे देखकर तापस कन्यायें भी प्रभावित हो जाती हैं। उनमें से एक प्रियम्वदा के शब्दों में 'चतुरगम्भीराकृतिर्मधुरं प्रियमालपन प्रभाववानिव लक्ष्यते। दुष्यन्त की बलशीलता की भाँति उसके शारीरिक सौन्दर्य की अभिव्यंजना अनेक स्थलों पर होती है। उदाहरणार्थ षष्ठांक में राजा के विषय में कञ्चुकी का यह कथन उल्लेखनीय है "अहो सर्वास्वस्थासु रमणीयत्वमाकृतिविशेषणाम्। एवमत्सुकोऽपि प्रियदर्शनो देवः। दुष्यन्त के इसी सौन्दर्य को देखकर शकुन्तला उस पर मोहित हो गयी थी और उससे तिरस्कृत हो जाने पर भी वह उसका स्मरण कर व्याकुल रहती थी। जैसाकि षष्ठांक में शकुन्तला कलाम्यतीति। सप्तम अंक में मारीच ऋषि की पत्नी दाक्षायणी भी उसके (दुष्यन्त के) सौन्दर्य और प्रभावशालिता से प्रभावित होकर कह उठती है संभावनीयाऽनुभावा अस्याकृतिः।'

दुष्यन्त को कवि ने आदर्श प्रेमी के रूप में चित्रित किया है। शकुन्तला के प्रति उसके प्रेम में उद्दामता और उच्छृंखलता नहीं है। दुष्यन्त को यद्यपि अपने अन्तःकरण पर विश्वास है तथा शकुन्तला को देखकर उसके प्रति प्रणय भावना को वह समाज अनुमोदित समझाता है तथा उसके प्रति प्रणय भाव को बढ़ाने से पूर्व वह उसके कुल जाति माता पिता विवाह आदि के संबंध में समस्त जानकारी प्राप्त कर लेता है।

वात्यल्यपूर्ण पिता - कवि कालिदास ने दुष्यन्त को एक वात्सल्यपूर्ण पिता के रूप में भी चित्रित किया है। दुष्यन्त को सन्तान की अत्यधिक अभिलाषा थी। अन्य किसी रानी से उसके कोई पुत्र न था। अतः उसको गर्भधारण करने वाली शकुन्तला की बहुत याद आती थी। मारीच आश्रम में सर्वदमन को देखकर उसका हृदय वात्सल्य से भर जाता है। पहले तो वह समझता है कि सन्तानहीनता के कारण ही मेरे हृदय में इसके प्रति प्रेम उमड़ रहा है "नूनमनपत्यता मां वत्सलयति" तथा उस बालक को गोद में लेने के लिए तरस उठता है परन्तु जब उसे विदित होता है कि उसका पुत्र है तो गोद में लेकर आलिंगन करता है और गद्गद होकर भगवान् मारीच से कहता है- "भगवान अत्र खलु में वंशप्रतिष्ठा।"

उदार तथा न्यायप्रिय शासक - दुष्यन्त उच्चकोटि का सफल शासक है उसे विश्वास है कि उसके राज्य में कोई भी उद्दण्डता का आचरण नहीं कर सकता है। वह प्रजा को अपनी सन्तान के समान पालता है - "प्रजाः प्रजा स्व इवा तंत्रयित्वा। वह सभी प्रजाजनों का बन्धु है। वह संसार के कल्याण के लिए दुःख उठाता है और कुमार्ग गामियों को नियंत्रित करता है। षष्ठांश वृत्ति होकर भी वह तापस जनों से कर नहीं लेता, क्योंकि उसके विचार से तापस जन उसे अपने तप का षष्ठांश देते हैं।

दुष्यन्त न्यायप्रिय शासक है और प्रतिदिन स्वयं न्याय का वितरण करता है वह किसी कारणवश मन्त्री आदि का कार्यभार छोड़कर स्वयं देखने का प्रयत्न करता रहता है। अस्वस्थ होने पर उसे अमात्य पिशुन पर न्याय करने का भार सौंप दिया है किन्तु धनमित्र के संबंध में अन्तिम निर्णय स्वयं लेता है।

कला कोविद - दुष्यन्त का ललित कलाओं का भी सूक्ष्म ज्ञान है। हंसपदिका के गीत को सुनकर वह उसका रस लेता है और प्रशंसा करता है "अहो राग परिवाहिणी गीतिः।' चित्रकला में वह निपुण है। उसके द्वारा निर्मित शकुन्तला के चित्र को देखकर सानुमती को ऐसा प्रतीत होता है कि मानो शकुन्तला उसके सम्मुख खड़ी है "अहो एष राजर्षेर्निपुणता।' जाने सख्यग्रतो में वर्तते। यही नहीं कामार्त्ततावश प्रकृति कृपण होकर स्वयं दुष्यन्त भी उस चित्र को वास्तविक समझ लेता है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि राजा दुष्यन्त एक आदर्श प्रेमी और पृथ्वी पालक है। उसका विवेक एवं सहृदयता उसके दो पक्षों को प्रस्तुत करती है। एतदतिरिक्त वह एक महान् पराक्रमी, कर्त्तव्यपरायण, प्रजापालक, न्यायपालक, धर्मानुरक्त, विविध कलाओं का ज्ञाता व प्रेमी, निरभिमानी, विनयी, सुशील आदर्श नायक है। उसके विषय में मिराशी जी लिखते हैं "कालिदास के सब नायकों में दुष्यन्त श्रेष्ठ है। वह आकृति से भव्य, मन से कोमल है। गम्भीर आकृति और मधुर भाषण से दूसरों को एकदम आकृष्ट कर लेता है। पराक्रमी, विनयशील, धार्मिक, प्रेमिल और कर्त्तव्य तत्पर ऐसे धीरोदात्त नायक का चित्र खींचकर कालिदास ने हमारे सामने आदर्श पुरुष खड़ा किया है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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